उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में सोमवार को एक मामूली विवाद ने भयावह रूप ले लिया, जब जातीय तनाव के चलते हालात पूरी तरह बेकाबू हो गए। प्रदर्शनकारियों ने न सिर्फ सड़कों पर हंगामा किया, बल्कि पुलिस बल को भी निशाना बनाते हुए पथराव किया। इस हिंसा में कई पुलिसकर्मी घायल हो गए, जबकि पुलिस के वाहन बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए।
घटना के बाद पूरे जिले में अफरा-तफरी मच गई। आगरा-कानपुर नेशनल हाईवे (एनएच) को प्रदर्शनकारियों ने पूरी तरह जाम कर दिया, जिससे दोनों दिशाओं में वाहनों की लंबी कतारें लग गईं। हालात को नियंत्रण में लाने के लिए जिला प्रशासन ने भारी संख्या में पुलिस बल तैनात किया है।
हाईवे बना जंग का मैदान: घंटों तक बंद रहा यातायात
सुबह से ही इटावा शहर में तनाव के बादल मंडराने लगे थे। दो समुदायों के बीच बढ़ते विवाद ने अचानक हिंसक रूप धारण कर लिया। प्रदर्शनकारियों ने देखते ही देखते आगरा-कानपुर नेशनल हाईवे पर कब्जा कर लिया और सड़क को पूरी तरह ब्लॉक कर दिया। विरोध में लगे लोगों ने जगह-जगह बैरिकेड्स लगाकर यातायात को रोक दिया।
इस दौरान कई वाहनों पर पथराव किया गया, जिसमें यात्रियों को जान बचाकर भागना पड़ा। ट्रकों, कारों और बसों की खिड़कियों पर पत्थर बरसते रहे, जिससे लोगों में डर और दहशत का माहौल बन गया।
पुलिस बनी निशाना, हालात बेकाबू
प्रदर्शनकारियों की भीड़ उग्र होती चली गई और उन्होंने मौके पर पहुंची पुलिस टीम को भी नहीं बख्शा। पुलिस पर जमकर पथराव हुआ, जिसमें कई पुलिसकर्मियों को चोटें आईं। कम से कम तीन पुलिस वाहन पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए।
भीड़ इतनी आक्रोशित थी कि सुरक्षा बलों को पीछे हटने के लिए मजबूर होना पड़ा। पथराव के बीच कई जवानों ने खुद को सुरक्षित स्थानों पर छिपाकर अपनी जान बचाई।
क्यों भड़का जातीय विवाद?
प्रारंभिक जानकारी के अनुसार, मामला एक स्थानीय सामाजिक कार्यक्रम से जुड़ा था, जहां एक समुदाय के लोगों द्वारा कथित रूप से भड़काऊ टिप्पणी की गई। इसके बाद बात फैलती गई और देखते ही देखते यह विवाद पूरे इलाके में आग की तरह फैल गया।
सूत्रों की मानें तो दोनों पक्षों में पहले भी तनातनी थी, और यह हालिया घटना महज एक चिंगारी बनकर सामने आई। पुलिस प्रशासन मामले की तह तक पहुंचने की कोशिश कर रहा है, ताकि दोषियों की पहचान की जा सके।
प्रशासन हरकत में: भारी पुलिस बल और RAF तैनात
घटना की सूचना मिलते ही जिले के आला अधिकारी मौके पर पहुंचे। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए न केवल स्थानीय पुलिस बल, बल्कि पीएसी और रैपिड एक्शन फोर्स (RAF) को भी तैनात किया गया।
इटावा के एसएसपी संजीव त्यागी ने बताया,
“स्थिति अब नियंत्रण में है। हमने संवेदनशील इलाकों में फ्लैग मार्च शुरू कर दिया है और उपद्रवियों की पहचान की जा रही है। किसी भी दोषी को बख्शा नहीं जाएगा।”
शहर के कई हिस्सों में धारा 144 लागू कर दी गई है और सोशल मीडिया पर अफवाहों को रोकने के लिए निगरानी बढ़ा दी गई है।
हाईवे पर फंसे लोग: घंटों जाम में फंसे रहे यात्री
घटना का सबसे बड़ा असर आम जनता पर पड़ा। एनएच पर अचानक लगे इस जाम से हजारों लोग प्रभावित हुए। दूर-दूर से यात्रा कर रहे लोग घंटों तक सड़कों पर फंसे रहे। बच्चों, बुजुर्गों और महिलाओं को सबसे ज्यादा परेशानी उठानी पड़ी।
कुछ लोगों ने सोशल मीडिया पर लाइव वीडियो शेयर कर प्रशासन से मदद की गुहार भी लगाई। कई एंबुलेंसें भी ट्रैफिक में फंसी रहीं, जिससे स्वास्थ्य संबंधी सेवाओं पर भी असर पड़ा।
स्थानीय लोगों की प्रतिक्रिया: डर और नाराजगी दोनों
स्थानीय नागरिकों में इस पूरी घटना को लेकर नाराजगी साफ झलकी। एक दुकानदार रमेश यादव ने कहा,
“हम तो अपने घर का काम करने निकले थे, लेकिन एकदम से माहौल बदल गया। पुलिस भी कुछ नहीं कर पा रही थी। डर लग रहा है कि अब हमारे बच्चे स्कूल कैसे जाएंगे?”
एक अन्य निवासी शबीना परवीन ने बताया,
“पहली बार ऐसा नहीं हुआ है। जातीय तनाव यहां एक पुरानी बीमारी बन गई है, जिसे अब प्रशासन को गंभीरता से लेना होगा।”
सरकार और प्रशासन पर सवाल
यह घटना न केवल इटावा के प्रशासन के लिए, बल्कि प्रदेश सरकार के लिए भी एक चेतावनी की घंटी है। विपक्षी दलों ने कानून-व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए इसे सरकार की विफलता करार दिया है।
समाजवादी पार्टी के नेता ने कहा,
“जब जनता की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं हो सकती, तो ऐसी सरकार को सत्ता में रहने का कोई हक नहीं। ये प्रशासनिक विफलता है।”
इटावा में हुई इस जातीय हिंसा ने एक बार फिर यह साबित किया है कि सामाजिक ताने-बाने में तनाव कितना जल्दी उबाल पर आ सकता है। पुलिस बल ने हालात को कुछ हद तक संभाल तो लिया है, लेकिन असल चुनौती अब है—सांप्रदायिक सौहार्द को फिर से स्थापित करना।
प्रशासन को अब न सिर्फ दोषियों पर सख्त कार्रवाई करनी होगी, बल्कि दोनों समुदायों के बीच संवाद की प्रक्रिया भी शुरू करनी होगी, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं दोहराई न जाएं।
➤ आने वाले समय में प्रशासन की जिम्मेदारी होगी कि वह न केवल कानून-व्यवस्था बहाल करे, बल्कि इटावा को एक बार फिर भरोसे और शांति की राह पर वापस लाए।