बिहार चुनाव 2025 में एनडीए और महागठबंधन की जंग के बीच पीके, केजरीवाल और ओवैसी अपनी पार्टियों के साथ चुनावी मैदान में हैं। अब देखना ये है कि क्या ये नेता कोई बड़ा असर छोड़ पाएंगे।
प्रशांत किशोर ने जन सुराज पार्टी के जरिए बिहार की राजनीति में बदलाव लाने की पहल की है। उन्होंने तीन साल तक गांव-गांव जाकर शिक्षा, रोजगार और पलायन जैसे मुद्दों पर जनता से संवाद किया, और अब उनकी पार्टी युवाओं को केंद्र में रखकर चुनाव लड़ रही है।
केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने बिहार में अकेले चुनाव लड़ने के लिए एलान कर दिया हैं। दिल्ली और पंजाब में अपनी सरकार चला चुकी AAP अब बिहार में भी शिक्षा और स्वास्थ को लेकर जनता के बीच जाने की कोशिश कर रही हैं। हालाँकि बिहार की जातीय और स्थानीय राजनितया उनके लिए एक चुनौती बन चुकी हैं।
तीनों दलों का असर भले ही ये पार्टियां बहुत ज्यादा सीटें न जीतें
लेकिन इनका असर चुनावी गणित पर जरूर पड़ेगा। करीबी मुकाबले वाली सीटों पर ये वोट काट सकते हैं और बड़े गठबंधनों की रणनीति को उलझा सकते हैं। खासकर युवाओं और मुस्लिम वोटरों के बीच इनका प्रभाव बढ़ता दिख रहा है।
निष्कर्ष बिहार चुनाव 2025 में पीके, केजरीवाल और ओवैसी की पार्टियां भले ही सत्ता में न आएं, लेकिन वे ‘इम्पैक्ट प्लेयर’ जरूर बन सकती हैं। इनका रोल निर्णायक सीटों पर होगा, और यही उन्हें इस चुनाव में खास बनाता है।
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