बुधवार को भारत बंद रहेगा। बीमा, बैंकिंग से लेकर डाक व कोयला खनन तक सभी क्षेत्रों से 25 करोड़ से भी अधिक कर्मचारी भाग ले सकते हैं। 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच ने इसे ‘भारत बंद’ के रूप में वर्णित किया गया है। हड़ताल केंद्रीय सरकार की ‘किसान व मजदूर विरोधी और राष्ट्र विरोधी कॉरपोरेट समर्थक नीतियों’ के विरोध में होगी।
पहले हुई देशव्यापी हड़तालें
इससे पहले ट्रेड यूनियनों द्वारा 26 नवंबर, 2020, 28-29 मार्च, 2022 और 16 फरवरी 2024 को इसी तरह की देशव्यापी हड़ताल की गई थी।
ट्रेड यूनियनों ने औपचारिक और अनौपचारिक क्षेत्रों में महीनों की गहन तैयारियों का हवाला देते हुए “राष्ट्रव्यापी आम हड़ताल को एक बड़ी सफलता बनाने” का आह्वान किया है।
यूनियन के सदस्यों के अनुसार
अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस की अमरजीत कौर ने पीटीआई (समाचार एजेंसी) को बताया कि हड़ताल में 25 करोड़ से अधिक कर्मचारी भाग ले सकते है। देश भर से किसान और ग्रामीण श्रमिक भी प्रदर्शन में शामिल होंगे।
हिंद मजदूर सभा के हरभजन सिंह सिद्धू के अनुसार हड़ताल की वजह से बैंकिंग, डाक, कोयला खनन, कारखाने और राज्य परिवहन सेवाएं प्रभावित होंगी।
शामिल 10 यूनियन
यूनियनों में एआईटीयूसी, एचएमएस, सीआईटीयू, इंटक, एआईयूटीयूसी, टीयूसीसी, सेवा, एआईसीसीटीयू, एलपीएफ और यूटीयूसी शामिल हैं।
आरएसएस से संबद्ध भारतीय मजदूर संघ इस फोरम का हिस्सा नहीं है।
हड़ताल के कारण
पिछले साल यूनियनों ने अशांति के केंद्र में श्रम मंत्री मनसुख मंडाविया को 17 मांगों का एक चार्टर सौंपा था, जिसपर सरकार द्वारा कुछ खास काम नहीं हुआ। यूनियनों का कहना है कि सरकार ने इन मांगों को नज़रअंदाज़ किया है और पिछले दस वर्षों से वार्षिक श्रम सम्मेलन आयोजित नहीं हुआ है। उनके अनुसार यह कदम श्रम बल के प्रति सरकार की उदासीनता को दर्शाता है।
फोरम ने एक संयुक्त बयान में आरोप लगाया कि सरकार के श्रम सुधार नियम श्रमिकों के अधिकारों को खत्म करने के लिए बनाए गए हैं। श्रम सुधार नियम जिसमें चार नए श्रम कोड शामिल हैं।यूनियनों के अनुसार इन कोडों का उद्देश्य सामूहिक सौदेबाजी को खत्म करना, यूनियन गतिविधियों को कमजोर करना, काम के घंटे बढ़ाना व नियोक्ताओं को श्रम कानूनों के तहत जवाबदेही से बचाना है। फोरम का कहना है ‘सरकार ने देश के कल्याणकारी राज्य के दर्जे को त्याग दिया है’ तथा वह विदेशी तथा भारतीय कॉरपोरेट्स के हित में काम कर रही है।
यूनियन नेताओं के अनुसार संयुक्त किसान मोर्चा और कृषि श्रमिक यूनियनों के संयुक्त मोर्चे ने हड़ताल का समर्थन किया है। ग्रामीण इलाकों में बड़े पैमाने पर लामबंदी करने का फैसला भी किया गया है।