अब चुनाव प्रचार के लिए विज्ञापन सहित अन्य चुनावी कंटेंट तैयार करने में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की तेजी से बढ़ती भूमिका के मद्देनजर चुनाव आयोग का भी बहुत सतर्क है. अब भी इसका दुरुपयोग रोकने के लिए और तकनीक के सकारात्मक बेहतर इस्तेमाल के लिए आयोग के विशेषज्ञ गाइडलाइन भी तैयार कर रहे हैं. अगले कुछ हफ्तों में इसे जारी भी किया जा सकता है.
इस गाइड लाइन की पहली झलक बिहार विधानसभा चुनाव में ही दिख सकती है. निर्वाचन आयोग में उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक प्रस्तावित गाइडलाइन में भी राजनीतिक दलों, मीडिया संस्थानों और जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को AI जनरेटेड कंटेंट का भी स्पष्ट खुलासा करना अनिवार्य होगा.
डीपफेक वीडियो के लिए बनेंगे सख्त प्रावधान
खासतौर पर डीपफेक और फर्जी वीडियो/ऑडियो पर भी पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए इसमें सख्त प्रावधान भी किए जा रहे हैं. चुनाव प्रचार में डेटा एनालिटिक्स और व्यक्तिगत डेटा के इस्तेमाल के मानक रहेंगे. चुनाव से संबंधित मोबाइल एप्स और डिजिटल कैंपेन टूल्स में डाटा की पारदर्शिता और गोपनीयता सुनिश्चित करने पर भी जोर रहेगा.
2024 लोकसभा चुनाव में हुआ सबसे ज्यादा AI का इस्तेमाल
फ्यूचर शिफ्ट लैब्स की वैश्विक रिपोर्ट के अनुसार, 2024 के लोकसभा चुनाव में एआई का दुनिया में सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया गया था. चुनाव प्रचार के विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों पर आधुनिकतम तकनीक का 80% इस्तेमाल भी किया गया है. दुनिया के 74 देशों के चुनाव प्रचार का सर्वे कर रिपोर्ट भी तैयार की गई थी. उसमें भारत अव्वल नंबर पर रहा है. रिपोर्ट के मुताबिक देश में 5 करोड़ से ज्यादा रोबोकॉल्स AI तकनीक आधारित डीपफेक के भी जरिए की गईं थी.
US-UK से भी ज्यादा भारतीय कर रहे AI का इस्तेमाल
कॉल्स के उम्मीदवारों की कृत्रिम आवाजों से तैयार करी गई थीं. इस तकनीक के जरिए 22 भाषाओं में प्रचार सामग्री भी तैयार की गई थी और पांच करोड़ से ज्यादा लोगों के मोबाइल पर धड़ल्ले से कई हफ्तों तक भी भेजी गई थी. इसमें बड़े नेताओं, अभिनेताओं और विभिन्न क्षेत्रों की नामचीन हस्तियों की आवाज और छवियों का भी प्रयोग किया गया था. भारत में AI का यह उपयोग अमेरिका के मुकाबले 10% ज्यादा और ब्रिटेन से 30% अधिक पर पाया गया था, जिससे चुनाव आयोग की चिंता और भी बढ़ गई है.
मजाक उड़ाने वाले वीडियो पर लगेगी रोक
आयोग की निगाह और समझ में ये भी तथ्य है कि डीपफेक के जरिए असली लगने वाले सिंथेटिक कंटेंट पर ये भी घोषित करना होगा कि ये असली नहीं बल्कि बनावटी है मतलब की डीपफेक है.
राजनीतिक विरोधियों या प्रतिद्वंद्वियों के मजाक उड़ाने वाले या उनके बारे में तथ्यहीन भ्रामक जानकारी भी शेयर करने वाले संदेश या वीडियो पर सख्त पाबंदी भी लगाई जा सकती है.
राजनीतिक चुनावी रैलियों में आए लोगों के वीडियो से भी कंटेंट तो बनाया जा सकता है लेकिन विरोधियों की रैलियों में जाने वालों को भी निशाना बनाते हुए वीडियो जारी करने पर भी पाबंदी रहेगी.
स्थानीय भाषाओं में AI जनरेटेड ऑडियो
अब पार्टियां AI की मदद से नेता की आवाज़ को कॉपी करके भाषण भी तैयार कर रही हैं, जो स्थानीय बोली में भी होते हैं। जैसे उदारहण के तौर पे
“हमर सरकार बनही, त बिजली हर घर मिलही” (छत्तीसगढ़ी)
“अब ना होई पलायन, गांव में ही होई रोज़गार” (भोजपुरी)
इससे ग्रामीण और क्षेत्रीय मतदाताओं के साथ सीधा जुड़ाव भी बनता है।
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