
पारस अस्पताल ने एक बहुत बड़ा काम किया है। इससे अस्पताल को वैश्विक सफलता मिली है। अस्पताल ने पहली बार सफलतापूर्वक जीवित दाता द्वारा डबल वाल्व हार्ट सर्जरी के साथ लिवर ट्रांसप्लांट किया है।
किर्गिस्तानी महिला का हुआ इलाज
यह प्रक्रिया अनारा एम नामक एक महिला पर की गई। वह किर्गिस्तान की निवासी थी, जो भारत अपनी बीमारी का इलाज करवाने आई थी। महिला अंतिम चरण की ऑटोइम्यून लिवर बीमारी से जूझ रही थीं। उसके ट्राइकसपिड और माइट्रल हार्ट वाल्व में गंभीर खराबी भी थी। महिला को हृदय वाल्व और यकृत प्रत्यारोपण की जरूरत थी। विशेषज्ञों ने गहन मूल्यांकन करके एक शल्य चिकित्सा प्रक्रिया का सुझाव दिया, ताकि जोखिम और समस्याओं को कम किया जा सके।
मरीज़ अनारा आईसीयू में 8 दिन में बिताए थे। 14 दिन बाद उनको छुट्टी ही गई थी। वह 6 हफ़्ते के आराम के बाद सामान्य और स्वस्थ जीवन जी रही हैं।
23 वर्षीय भतीजे ने किया लीवर दान
महिला को लीवर दान उसके भतीजे ने ही किया था। वह इसके लिए किर्गिस्तान से आया था। उसको 5 दिन बाद अस्पताल से छुटी दी गई और तीन हफ्ते में वह वापस अपने देश लौट गया।वह अब अपना सामान्य जीवन जी रहा है।
सर्जरी करने वाले डॉक्टर
सर्जरी को सफल बनाने वाली डॉक्टरों की टीम में लगभग 20 अनुभवी और विशेषज्ञ शामिल थे। टीम में क्रिटिकल केयर नर्स, एनेस्थेटिस्ट और सर्जन शामिल थे।
- डॉ. वैभव कुमार (लिवर ट्रांसप्लांट और जीआई सर्जरी संस्थान के निदेशक)
- डॉ. अमित रस्तोगी (लिवर ट्रांसप्लांट और जीआई सर्जरी संस्थान के अध्यक्ष)
- डॉ. संजय कुमार (कार्डियक सर्जरी के उपाध्यक्ष)
डॉ. रजनीश मोंगा (गैस्ट्रोएंटरोलॉजी और हेपेटोलॉजी के अध्यक्ष) और डॉ. अमित भूषण शर्मा (कार्डियोलॉजी के निदेशक) और भी कुछ लोग थे, जिन्होंने अपना योगदान दिया।
डॉ. वैभव कुमार के अनुसार, पहली बार किसी जीवित दाता द्वारा लिवर ट्रांसप्लांट के साथ-साथ माइट्रल और ट्राइकसपिड वाल्व की मरम्मत की गई है।
इस प्रकार हुई सर्जरी
सर्जरी की पूरी प्रक्रिया में कुल 16 घंटे लगे थे। पहले 4 घंटे में हृदय को स्थिर किया गया था। हृदय स्थिर होने के बाद विशेषज्ञों ने आगे की प्रक्रिया शुरू की। जीवित दाता लिवर प्रत्यारोपण और हृदय वाल्व सर्जरी की प्रक्रिया में कुल 12 घंटे लगे। हृदय की कार्यप्रणाली पर नज़र रखने के लिए एक टीम तैनात की गई। हृदय के सही से स्थिर होने पर विशेषज्ञ दल ने प्रक्रिया शुरू की थी।