दिल्ली में सेकंड हैंड कार ( second hand car ) बाजार भारी संकट से गुजर रहा है। पुरानी गाड़ियों पर सरकारी पाबंदियों और कोर्ट के सख्त आदेशों के चलते इन कारों की कीमतों में 40 से 50 प्रतिशत तक की गिरावट आई है। करोल बाग, प्रीत विहार, पीतमपुरा और मोती नगर जैसे प्रमुख इलाकों में 1000 से अधिक व्यापारी सेकंड हैंड गाड़ियों के कारोबार से जुड़े हैं, लेकिन अब उन्हें भारी घाटे का सामना करना पड़ रहा है।
नियमों ने बिगाड़ा संतुलन
दिल्ली सरकार के दिशा-निर्देशों के अनुसार, पेट्रोल वाहन 15 साल और डीजल वाहन 10 साल पूरे होने के बाद राजधानी की सड़कों पर नहीं चल सकते। इसके अलावा, ऐसे वाहनों को ईंधन देने पर भी पाबंदी लगा दी गई थी। हालांकि, 1 जुलाई 2025 से लागू होने वाले इस प्रतिबंध को अस्थायी रूप से वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) ने टाल दिया है। फिर भी वाहन व्यापारियों को इससे कोई बड़ी राहत नहीं मिली है।
पुराने वाहनों का बाजार चरमरा गया
उद्योग संगठन चैंबर ऑफ ट्रेड एंड इंडस्ट्री (CTI) के चेयरमैन बृजेश गोयल ने बताया कि दिल्ली के करीब 60 लाख पुराने वाहन इन पाबंदियों से प्रभावित हुए हैं। सेकंड हैंड कार बाजार की हालत इतनी खराब हो गई है कि जो गाड़ियाँ पहले 6–7 लाख रुपये में बिकती थीं, अब 4 लाख में भी नहीं बिक पा रहीं। खुद व्यापारी अब गाड़ियों को एक-तिहाई कीमत पर बेचने को मजबूर हैं।
अन्य राज्यों में भी गिरा भरोसा
दिल्ली की पुरानी गाड़ियाँ आमतौर पर उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, बिहार, तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल जैसे राज्यों में ट्रांसफर की जाती थीं। लेकिन अब दूसरे राज्यों के ग्राहक भी दिल्ली की स्थिति जानकर मोलभाव कर रहे हैं और NOC (अनापत्ति प्रमाण पत्र) मिलने में हो रही देरी से परेशान हैं। पहले NOC की प्रक्रिया सरल थी, लेकिन अब इसमें कई तकनीकी अड़चनें और देरी हो रही है।
असमंजस की स्थिति बरकरार
हालांकि सरकार ने पर्यावरण मंत्री की चिट्ठी के बाद कुछ हद तक राहत देने का ऐलान किया है, लेकिन ये राहत फिलहाल अस्थायी है। कोर्ट के आदेशों के चलते End of Life (EOL) वाहनों की बिक्री और पंजीकरण पर अभी भी असमंजस बना हुआ है। ऐसे में दिल्ली के सेकंड हैंड वाहन बाजार की स्थिति सुधरने की फिलहाल कोई स्पष्ट दिशा नहीं दिख रही है।
व्यापारियों को सरकार से उम्मीद
CTI और संबंधित व्यापारी संगठनों ने सरकार से मांग की है कि सेकंड हैंड वाहनों की बिक्री और NOC प्रक्रिया को सरल बनाया जाए ताकि उन्हें हो रहे आर्थिक नुकसान से राहत मिल सके। अगर जल्द समाधान नहीं निकाला गया, तो सेकंड हैंड वाहन कारोबार में हजारों लोगों की आजीविका खतरे में पड़ सकती है।
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