महाराष्ट्र में ‘वॉयस ऑफ मराठी’ नाम से एक रैली हुई, जिसमें महाराष्ट्र सरकार द्वारा तीन-भाषा नीति को वापस लेने का स्वागत किया गया। इस रैली में उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे सालों बाद एक मंच पर साथ नजर आए और एक दूसरे को गले लगाया। दोनो नेताओं ने कहा कि अब उनके बीच की दूरियां खत्म हो गई हैं। दोनों ही नेता पहले से ही इस नीति के खिलाफ थे। दोनो नेताओं का कहना है कि मराठी भाषा को प्राथमिकता मिलनी चाहिए और हिंदी भाषा किसी पर थोपी नहीं जानी चाहिए।
दरअसल महाराष्ट्र शिक्षा विभाग ने एक घोषणा की थी जिसके तहत मराठी और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में कक्षा 1 से 5 तक के विद्यार्थियों के लिए हिंदी को अनिवार्य कर तीसरी भाषा बनाया जाएगा, लेकिन महाराष्ट्र में विरोध के बाद इस नीति को वापस ले लिया गया। वही तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने दोनो नेताओं की बात का समर्थन करते हुए इसे एक अच्छा संकेत बताया है।
क्या बोले तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन
दोनो नेताओं की बात कर समर्थन करते हुए तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने कहा कि यह एक अच्छा संकेत है कि देश के अलग-अलग राज्यों के नेता क्षेत्रीय भाषाओं की रक्षा के लिए साथ आ रहे हैं। उन्होंने उम्मीद जताई कि इस एकता से केंद्र सरकार को यह संदेश जाएगा कि भारत की भाषाई विविधता का सम्मान किया जाना चाहिए। स्टालिन पहले से ही इस नीति को हिंदी थोपने की कोशिश बताते रहे हैं। स्टालिन ने तमिल मे अपने x अकाउंट पर लिखा , ‘तमिलनाडु की जनता और द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) ने पीढ़ी दर पीढ़ी हिंदी थोपने के खिलाफ जो संघर्ष किया है, वह अब राज्य की सीमाओं से बाहर निकल चुका है और महाराष्ट्र में विरोध की आंधी भड़का दी है’। स्टालिन ने कहा कि केंद्र के पास राज ठाकरे के सवालों का कोई जवाब नहीं है कि उत्तर प्रदेश और राजस्थान में तीसरी भाषा क्या होगी और गैर-हिंदी भाषी राज्यों पर हिंदी क्यों थोपी जा रही है, जबकि हिंदी भाषी राज्य आर्थिक रूप से पिछड़ रहे हैं। सरकार की इस नीति के तहत छात्रों को तीन भाषाएं सीखनी होंगी, जिनमें एक हिंदी भी हो सकती है, लेकिन तमिलनाडु में अब तक सिर्फ दो भाषाएं पढ़ाई जाती है जो कि तमिल और अंग्रेज़ी है। स्टालिन का कहना है कि तमिलनाडु के लोग पहले भी हिंदी थोपने का विरोध कर चुके हैं और आगे भी करेंगे। उन्होंने कहा कि तमिल उनकी मातृभाषा है और वह किसी भी हालत में इसे पीछे नहीं जाने देंगे।