उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती जिले के कटरा बाजार स्थित ककरहा तालाब, जिसे कुछ लोग “पोखरा” और कुछ “कर्बला” के नाम से जानते हैं, Hindu-Muslim एकता का ऐसा प्रतीक है जिसकी मिसाल पूरे देश में दी जाती है। नवीन मॉर्डन थाना क्षेत्र के अंतर्गत आने वाला यह तालाब न सिर्फ धार्मिक आयोजनों का केंद्र है, बल्कि सदियों से दो समुदायों के बीच सौहार्द और भाईचारे का भी गवाह है।
इस तालाब के तट पर हिन्दू और मुस्लिम दोनों धर्मों के महत्वपूर्ण आयोजन शांति व समर्पण के साथ होते हैं। मोहर्रम के दसवीं को मुस्लिम समुदाय के लोग ताजिया दफन करने के लिए इसी तालाब को कर्बला मानते हैं, वहीं हिन्दू समुदाय दशहरे पर इसी स्थल पर रावण व मेघनाद का पुतला दहन करता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन इसी तालाब में स्नान कर हिन्दू श्रद्धालु पुण्य अर्जित करते हैं। मनचित्ता पूजन हो या कार्तिक मेला – हर आयोजन यहां सदियों से होता आया है।
सबसे अद्भुत बात यह है कि कटरा बाजार में मोहर्रम के दौरान मुस्लिमों से अधिक हिन्दू समुदाय इस मातमी पर्व में हिस्सा लेता है। हिन्दू घरों में ताजिया रखे जाते हैं, रोजे रखे जाते हैं, फातिहा पढ़ा जाता है और पायक भी बांधे जाते हैं। पायकों को कलमा पढ़ाने वाले भी कई बार हिन्दू ही होते हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि धर्म से ऊपर इंसानियत और आपसी सम्मान की भावना है।
गांव में मोहर्रम की शुरुआत पलटू राम चौधरी के घर पर ताजिया रखकर होती है और फातिहा भी वहीं पढ़ा जाता है। इसी क्रम में आसपास के गांवों के लोग पायक बनाते हैं, और अंततः राम सूरत पटेल के चौक पर रखे ताजिए के साथ कर्बला (ककरहा तालाब) की ओर जुलूस बढ़ता है।
वरिष्ठ पत्रकार व समाजसेवी माता प्रसाद वर्मा का कहना है कि यह तालाब जिले में सांप्रदायिक सौहार्द का सबसे बड़ा उदाहरण है, जहां दोनों धर्मों के लोग मिलकर अपने पर्व मनाते हैं। वहीं, सामाजिक कार्यकर्ता नवीन चौधरी मानते हैं कि यह परंपरा बुजुर्गों की देन है, जिसे आज का युवा वर्ग पूरी निष्ठा से आगे बढ़ा रहा है।
कटरा बाजार का ककरहा तालाब केवल एक जलस्रोत नहीं, बल्कि भाईचारे, समरसता और साझी विरासत का प्रतीक है। यह तालाब हमें याद दिलाता है कि धर्म अलग हो सकते हैं, लेकिन दिल और संस्कृति एक हो सकते हैं।