केंद्र सरकार द्वारा राजस्थान स्थित सरिस्का टाइगर रिजर्व की सीमाओं को पुनः निर्धारित करने के प्रस्ताव पर कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने चेतावनी दी कि यह फैसला पर्यावरण और वन्यजीवों, खासतौर से बाघों, के लिए गंभीर खतरा बन सकता है।
रमेश ने कहा कि प्रस्तावित बदलावों से पहले से बंद पड़ी 50 खनन इकाइयों को दोबारा चालू करने का रास्ता साफ हो जाएगा। ये खदानें मुख्य रूप से संगमरमर, डोलोमाइट, चूना पत्थर और मेसोनिक पत्थर से संबंधित हैं। उन्होंने चिंता जताई कि इन खनिजों की खुदाई बाघों के प्राकृतिक आवासों को नुकसान पहुंचाएगी और पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को असंतुलित कर देगी।
सरिस्का का पुनरुद्धार: एक मिसाल
जयराम रमेश ने सोशल मीडिया पर साझा पोस्ट में सरिस्का के पुनरुद्धार का उल्लेख करते हुए लिखा कि 2004 के अंत तक अवैध शिकार के चलते यहां बाघों की संख्या शून्य हो गई थी। इस संकट के बाद 2005 में तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में टाइगर टास्क फोर्स का गठन हुआ। इसके साथ ही राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) और वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो की स्थापना की गई।
सरिस्का और पन्ना जैसे टाइगर रिजर्वों में बाघों के पुनर्वास की कोशिशें की गईं। तमाम संदेहों के बावजूद आज सरिस्का में बाघों की संख्या 48 तक पहुंच चुकी है, जो कि एक ऐतिहासिक उपलब्धि है।
खनन के दोबारा आरंभ पर गहरी आपत्ति
रमेश ने चेताया कि टाइगर रिजर्व की सीमाओं को पुनः परिभाषित करने से जो 50 खदानें फिर से चालू होंगी, वे बाघों के सुरक्षित क्षेत्र में हस्तक्षेप करेंगी। उन्होंने कहा कि बाघों के आवास को नुकसान पहुँचाना केवल बफर जोन में नकली उपायों से नहीं सुधारा जा सकता। उन्होंने इस निर्णय को “पारिस्थितिक रूप से विनाशकारी” करार दिया।
जयराम रमेश ने यह भी याद दिलाया कि केंद्रीय पर्यावरण मंत्री और राजस्थान के पर्यावरण मंत्री, दोनों ही अलवर से आते हैं, जहां सरिस्का स्थित है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से अपील की कि वह इस मुद्दे पर हस्तक्षेप करे, क्योंकि यह अदालत के पूर्ववर्ती आदेशों का उल्लंघन प्रतीत होता है।