लखनऊ में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में आम आदमी पार्टी (AAP) के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार पर करारा हमला बोला। उन्होंने सरकार की शिक्षा नीति और कानून व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए कहा कि मौजूदा शासन में बच्चों का भविष्य खतरे में है और प्राथमिक शिक्षा को लेकर सरकार की मंशा स्पष्ट रूप से चिंताजनक है।
संजय सिंह ने प्रेस को संबोधित करते हुए बड़ा दावा किया कि राज्य सरकार 27,000 से अधिक सरकारी स्कूलों को बंद करने की योजना पर काम कर रही है। उनके अनुसार, यह बंदी ‘विलय’ या मर्जर के नाम पर की जा रही है। उन्होंने कहा कि यह कदम सीधे तौर पर शिक्षा का अधिकार अधिनियम (Right to Education Act) का उल्लंघन है, जो 6 से 14 साल के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा की गारंटी देता है।
उन्होंने चेतावनी दी कि यदि यह योजना लागू की गई, तो लाखों बच्चों को शिक्षा से वंचित होना पड़ेगा और इससे समाज में शिक्षा का असंतुलन और गहराएगा।
आंकड़ों के साथ सरकार पर हमला
संजय सिंह ने अपनी बात को केवल भाषण तक सीमित नहीं रखा, बल्कि तथ्यों और आंकड़ों के साथ अपनी बात रखी। उन्होंने बताया कि वर्ष 2024 में राज्य सरकार ने 27,308 मदिरालय (शराब की दुकानें) खोलने की अनुमति दी, जबकि सरकारी स्कूलों की हालत दिन-ब-दिन खराब होती जा रही है।
उन्होंने सरकार से तीखा सवाल पूछा:
“उत्तर प्रदेश को मधुशाला चाहिए या पाठशाला?”
यह सवाल न केवल सरकार की प्राथमिकताओं पर कटाक्ष करता है, बल्कि समाज में उठ रहे उस असंतोष को भी दर्शाता है जो शिक्षा और नैतिक मूल्यों की अनदेखी पर आधारित है।
42 लाख बच्चों ने छोड़ा सरकारी स्कूल
एक और चौंकाने वाला दावा संजय सिंह ने किया कि पिछले चार वर्षों में 42 लाख बच्चों ने उत्तर प्रदेश के सरकारी स्कूल छोड़ दिए हैं। उन्होंने विशेष रूप से अलीगढ़ जिले का उल्लेख करते हुए बताया कि वहां अकेले ही 58,000 बच्चे अब सरकारी शिक्षा व्यवस्था का हिस्सा नहीं हैं।
यह आंकड़े न केवल शिक्षा की गिरती गुणवत्ता को दर्शाते हैं, बल्कि यह भी संकेत देते हैं कि राज्य में गरीब और मध्यम वर्ग के परिवारों के पास अब शिक्षा का कोई विश्वसनीय विकल्प नहीं बचा है।
5,696 स्कूलों में केवल एक शिक्षक
शिक्षा प्रणाली की जमीनी हकीकत को उजागर करते हुए संजय सिंह ने बताया कि राज्य के 5,696 प्राथमिक विद्यालयों में केवल एक शिक्षक कार्यरत है। यह शिक्षा की गुणवत्ता और बच्चों के समग्र विकास पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगाता है।
एकल शिक्षक वाली व्यवस्था में न तो बच्चों को पर्याप्त व्यक्तिगत ध्यान मिल पाता है, न ही विषयों की विविधता को उचित रूप से पढ़ाया जा सकता है। इससे बच्चों की नींव कमजोर होती है, जो आगे चलकर पूरी शिक्षा प्रणाली पर असर डालती है।
‘बुलडोजर मॉडल’ को बताया शिक्षा का दुश्मन
संजय सिंह ने सरकार की ‘बुलडोजर नीति’ की भी आलोचना की। उन्होंने आरोप लगाया कि जैसे सीतापुर में घरों और दुकानों पर बुलडोजर चलाया गया, वैसे ही अब सरकार शिक्षा व्यवस्था को भी नेस्तनाबूद करने पर तुली है।
उनके अनुसार, स्कूलों को जबरन बंद करना और छात्रों को दूर-दराज के स्कूलों में भेजना सामाजिक अन्याय है और इससे विशेषकर ग्रामीण इलाकों के बच्चों को भारी नुकसान होगा।
आंदोलन की चेतावनी
संजय सिंह ने एलान किया कि अगर स्कूल बंद करने की योजना लागू की गई, तो आम आदमी पार्टी पूरे राज्य में आंदोलन करेगी। उन्होंने कहा कि
“जहां भी स्कूल बंद होंगे, AAP के कार्यकर्ता वहां पहुंचेंगे और बच्चों के हक में आवाज उठाएंगे।”
उन्होंने यह भी कहा कि यदि सरकार उनके आरोपों को झूठा मानती है, तो उसे आंकड़ों के साथ खुली बहस करनी चाहिए।
“गोबर भरने” वाला बयान
इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में संजय सिंह का सबसे विवादास्पद बयान तब आया जब उन्होंने कहा कि सरकार जनता के “दिमाग में गोबर भरने” का काम कर रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि जनता को धार्मिक और सांप्रदायिक मुद्दों में उलझाकर असली समस्याओं — जैसे शिक्षा, बेरोजगारी और स्वास्थ्य — से भटका दिया जा रहा है।
उनका यह बयान सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुआ और राजनीतिक हलकों में भी इस पर तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली।
शिक्षा बनाम शराब: प्राथमिकता का सवाल
संजय सिंह ने पूरी बातचीत में इस बात पर जोर दिया कि सरकार की प्राथमिकताएं अब शिक्षा नहीं, बल्कि शराब जैसे राजस्व आधारित क्षेत्रों पर केंद्रित हो गई हैं। उन्होंने कहा कि
“एक तरफ सरकार लाखों बच्चों को स्कूलों से बाहर कर रही है, वहीं दूसरी ओर हर मोहल्ले में शराब की दुकान खोलने की इजाज़त दी जा रही है।”
यह बयान राज्य सरकार की नीति पर गंभीर सवाल खड़े करता है: क्या वर्तमान में उत्तर प्रदेश की नीतियां बच्चों के भविष्य के हित में हैं?
निष्कर्ष: जनता तय करे — ‘पाठशाला या मधुशाला’?
संजय सिंह के बयान केवल एक राजनीतिक हमला नहीं, बल्कि समाज की उस चिंता को स्वर देते हैं जिसे लंबे समय से अनसुना किया जा रहा है। अगर वाकई राज्य में स्कूलों को बंद किया जा रहा है और उनकी जगह शराब की दुकानों की संख्या बढ़ रही है, तो यह न केवल शिक्षा नीति की विफलता है, बल्कि एक पूरे समाज के पतन की शुरुआत मानी जाएगी।
अब यह जनता को तय करना है कि उन्हें “मधुशाला चाहिए या पाठशाला”। यह सवाल केवल उत्तर प्रदेश का नहीं, बल्कि पूरे देश के भविष्य से जुड़ा है।