
28 जुलाई 2025 को संसद में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर चर्चा शुरू हुई। यह एक बड़ा आतंकवाद विरोधी अभियान था जिसे हाल ही में सुरक्षा एजेंसियों ने अंजाम दिया।
इसके सामाजिक और राजनीतिक प्रभावों के कारण यह मामला संसद में गंभीरता से उठाया जा रहा है।
ऑपरेशन सिंदूर क्या है?
ऑपरेशन सिंदूर उत्तर पूर्व भारत में चलाया गया एक सख्त आतंकवाद विरोधी अभियान था, जिसमें सेना, स्थानीय पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों ने संयुक्त रूप से कार्रवाई की।
इस दौरान कई आतंकवादी पकड़े गए और भारी मात्रा में हथियार बरामद हुए।
संसद में क्या हो रहा है?
सत्तापक्ष ने ऑपरेशन सिंदूर को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए जरूरी बताया, जिससे सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति की उम्मीद जताई गई।
विपक्ष ने इसकी पारदर्शिता और मानवाधिकारों पर सवाल उठाए, खासकर आम नागरिकों पर असर को लेकर।
कुछ सांसदों ने ऐसे अभियानों में स्थानीय सहयोग और सोच-समझ की वकालत की है।
सुबह 11 बजे शुरू होगी लोकसभा की कार्यवाही
संसद में ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा के लिए समाजवादी पार्टी को 65 मिनट मिले हैं, जिसमें अखिलेश यादव और राजीव राय वक्तव्य देंगे। NCP से सुप्रिया सुले और JDU से ललन सिंह भी चर्चा में भाग लेंगे।
जनता की प्रतिक्रियाएं
ऑपरेशन के बाद से ही स्थानीय लोगों में मिली-जुली प्रतिक्रिया देखने को मिली है।
कुछ लोग इसे सुरक्षा की दिशा में एक ठोस कदम मानते हैं, तो दूसरी ओर कुछ लोग इससे जुड़ी अफवाहों और डर को लेकर काफी परेशान हो रखे हैं।
सरकार की सफाई
गृह मंत्रालय का यह कहना है कि यह ऑपरेशन अंतरराष्ट्रीय खतरों से निपटने के लिए बहुत जरूरी था।
उन्होंने यह भी आश्वासन दिया कि किसी निर्दोष नागरिक को नुकसान नहीं पहुंचाया गया है और कार्रवाई पूरी तरह से नियमों के तहत की गई थी।
अब आगे क्या?
संसद की चर्चा के बाद अब उम्मीद है कि इस विषय पर एक विस्तृत रिपोर्ट सामने लायी जाएगी ।
मानवाधिकार आयोग और सुरक्षा समितियों से भी इस पर विचार मांगा जा रहा है।
यह मामला केवल सुरक्षा का ही नहीं, बल्कि नीति, जवाबदेही और नागरिक अधिकारों से भी जुड़ा हुआ है।
निष्कर्ष
ऑपरेशन सिंदूर संसद में सुरक्षा और लोकतांत्रिक जिम्मेदारियों को उजागर करने वाला एक अहम मुद्दा बन गया है
जिसमें सरकार, विपक्ष और जनता की भूमिका को महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इससे भविष्य की नीतियों को नई दिशा मिलने की संभावना है।
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