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समय संसार का सबसे बड़ा गुरु है, हर वक्त सिखाता है।

 

आज आषाढ़ मास की पूर्णिमा है। आज के दिन को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। यह दिन गुरुओं को समर्पित होता है। गुरु का हमारे जीवन में बहुत महत्व होता है। गुरु हमें जीवन का ज्ञान, शिक्षा देते हैं। गुरु की शिक्षा से ही हम एक काबिल इंसान बनते हैं।

सबसे बड़ा गुरु

संसार मैक्सबेस बड़ा गुरु समय को मन जाता है। हम हर समय कुछ न कुछ, किसी न किसी रूप में सीखते रहते हैं। समाज में बहुत सी कहावतें प्रसिद्ध है जैसे, “समय के साथ सब सीख जाएगा” और “समय सब सीखा देता है”

गुरु पूर्णिमा मनाने का कारण

हर साल आषाढ़ महीने की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। एक दिन हम अपने गुरुजनों का आदर, सत्कार करते हैं। उन्हें सम्मान देते हैं। आज के दिन 10 जुलाई, 2025 को आषाढ़ मास की पूर्णिमा है यानी आज ही के दिन को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाएगा।

आषाढ़ की पूर्णिमा को गुरुपूर्णिमा मानने के पीछे कई कारण है। इस दिन को हिंदू, बोध, जैन धर्म में खूब मनाया जाता है। इसके पीछे चार कारण सबसे विशेष है:

  1.  भगवान शिव द्वारा सप्तऋषि को ज्ञान :  मान्यताओं के अनुसार इसी दिन पहला ज्ञान दिया गया था। आज ही के दिन भगवान शिव ने सप्तऋषियों को ज्ञान दिया था और वह संसार के पहले गुरु बने थे।
  2. महर्षि वेदव्यास की जयंती: गुरु पूर्णिमा को वेदव्यास जयंती भी कहते हैं, क्योंकि इसी दिन महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था। उन्होंने चारों वेदों (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद), 18 पुराणों, महाभारत और ब्रह्मसूत्रों की रचना की थी। उन्होंने ज्ञान को व्यवस्थित किया और उस ज्ञान को अपने शिष्यों के माध्यम से आगे पहुँचाया। इसलिए उन्हें “आदिगुरु” माना जाता है।
  3. भगवान बुद्ध की शिक्षा: मान्यताओं के अनुसार, मन जाता है कि सारनाथ में आज ही के दिन भगवान गौतम बुध ने अपने 5 शिष्यों को उपदेश दिया था। इसी वजह से यह दिन बोध धर्म में भी बहुत चाव से मनाया जाता है।
  4. गौतम स्वामी को केवलज्ञान की प्राप्ति: गौतम गणधर जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर के प्रमुख शिष्य थे। गुरु पूर्णिमा के ही दिन, गौतम स्वामी को केवलज्ञान की प्राप्ति हुई थी। इसलिए यह दिन जैन धर्म में गौतम स्वामी की ज्ञान प्राप्ति के रूप में मनाया जाता है

गुरु पूर्णिमा को मनाने की विधि

धार्मिक महानताओं के अनुसार आज के दिन लोग भगवान शिव के मंदिर जाकर विशेष पूजा करते हैं। शिवलिंग पर जल व फूल चढ़ाते है। अपने गुरुओं का सिमरन करते है।

समय के साथ-साथ गुरु पूर्णिमा मनाने की विधि में भी काफी परिवर्तन देखे गए हैं। आज के दिन लोग अपने शिक्षकों से मिलते हैं। उनका आदर करते हैं। गुरु का आशीर्वाद लेते है। आज के दिन व्रत भी रखा जाता है और दान भी किया जाता है।

गुरुपूर्णिमा व्रत

आज के दिन बहुत लोग एलन गुरु के समान में व्रत रखते हैं तथा दान भी करते हैं। गुरुपूर्णिमा से जुड़ी बहुत सी कथाएं प्रसिद्ध है जिनमें शिष्यों के जीवन में गुरुओं के महत्व को समझाया गया है। लोग आज के दिन व्रत में इन्हीं कहानियों को सुनते है।

गुरुओं के महत्व को दर्शाती रचनाएं

इतिहास में बहुत से प्रसिद्ध लेखकों, कवियों, रचनाकारों ने अपनी अपनी रचनाओं में गुरुओं के महत्व को दर्शाया है। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से समस्त संसार को बताया कि गुरु का हमारे जीवन में क्या स्थान और महत्व होता है, गुरु हमारे जीवन को कैसे सफल बनाने में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। कुछ प्रमुख रचनाएं निम्न है:

कबीरदास जी के प्रसिद्ध दोहा:

“गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय।

बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो बताय।।”

अर्थ: जब गुरु और भगवान दोनों सामने खड़े हों, तो पहले गुरु को प्रणाम करता हूँ क्योंकि उसी की कृपा से मुझे भगवान का ज्ञान हुआ।

“ऐसा कोई ना मिले, हमको दे उपदेस।

भूलन को समझाए, और न भूले आप।”

अर्थ: ऐसा सच्चा गुरु मिलना दुर्लभ है जो केवल उपदेश न दे, बल्कि स्वयं आचरण करके दिखाए।

“गुरु कुम्हार शिष्य कुम्भ है, गढ़ि-गढ़ि काढ़े खोट।

अंतर हाथ सहार दे, बाहर मारे चोट।।”

अर्थ: गुरु कुम्हार की तरह होता है जो शिष्य रूपी घड़े को ठोक-बजाकर आकार देता है — बाहर से कठोर दिखता है, पर भीतर से सहारा देता है।

संत तुलसीदास जी का दोहा:

“बिनु गुरु होइ न ज्ञान, बिनु ज्ञान न होइ बिवेक।

बिनु बिवेक बिनु बापुड़ो, मिटइ न मन का पेक।।”

अर्थ: बिना गुरु के ज्ञान नहीं होता, बिना ज्ञान के विवेक नहीं आता और बिना विवेक के मन के भ्रम नहीं मिटते।

संत रहीम का दोहा:

“रहिमन दीखे गुरु बड़ा, जग में दीसै और।

काया के अंतर्गत, दीपक दे उजियारे।”

गुरु पूर्णिमा के गीत

गुरुपूर्णिमा पर अलग अलग भाषाओं में गीत बने हैं। इन गीतों के माध्यम से भी गुरुओं के महत्व को दर्शाया गया है।

हिंदी और ब्रज भाषा:

“गुरु बिन कौन बतावे बाट” – संत कबीर का प्रसिद्ध भजन।

“गुरु मेरे परमात्मा” – भक्ति भाव से ओत-प्रोत हिंदी भजन।

“गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागू पाय” – कबीर का दोहा जिसे कई गायकों ने भजन के रूप में गाया है।

“गुरु महाराज गुरुवर मेरे” – गुरु की महिमा को समर्पित एक लोकप्रिय हिंदी भजन।

पंजाबी भाषा:

सतगुरु नमक प्रगटेया” – गुरु नानक देव जी के जन्म और शिक्षाओं पर आधारित भजन।

“मेरा सतगुरु” – कई सूफी और भक्ति गायकों द्वारा गाया गया गीत।

“सतगुरु मैं तेरी पतंग” – गुरु के बिना में कुछ नहीं का ज्ञान देता है।

आप भी इन गीतों को सुनकर आज का दिन मनाए। हमें अपने गुरुओं से सदा सीखते रहना चाहिए। जब तक सांसे है सीखना कभी भी बंद नहीं हो सकता।

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